ज़िन्दगी की ख़ामोश आवाज़ सुनिए -- वो पहले की तरह जीना चाहती है।
Article by - Anshu Harsh
इन दिनों एक आब्जर्वर के तौर पे इस दुनियाँ को देखूँ अगर, तो वैश्विक महामारी का ये दौर पूरी दुनियाँ के लिए कठिनतम समय है। जहाँ एक ओर हज़ारों लाखों की संख्या में लोग इस महामारी से पीड़ित हो कर मर रहे है , हिन्दुस्तान में आज भी कोरोना के नाम पे चुटकुलों का रेला निकल पड़ा है। सोशल मिडिया एक ऐसा माध्यम बना हुआ है जहाँ हर व्यक्ति अपने हिसाब से कुछ भी लिखता है , मोदी जी की थाली बजने की अपील शुकराना अदा करने का माध्यम था , उन लोगो के लिए जो इन कठिन और डरा देने वाली परिस्थियों में देश की सेवा में लगे है।
लेकिन लोगो ने एक दिन जनता कर्फ्यू को थाली बजा कर ऐसे जश्न मनाया जैसे एक दिन घर में रहकर कोई जग जीत लिया हो या थाली जोर जोर से बजाने से कोरोना भाग जाएगा । लोगों का जश्न देख कर मन व्यथित भी हुआ लेकिन एक विचार ये भी आया की ये जो लॉक डाउन वाला समय है बहुत मुश्किल है , घर में रहने की आदत नहीं , घर के काम करने की आदत नहीं और इसे सहजता से स्वीकार कर भी ले कठिन समय की जरूरत समझ कर कर भी ले तो , एक सोच एक विचार कमाई के साधन का एक चिंता की लकीर ले आता है माथे पे। इस चिंता को कुछ देर के लिए ही सही ये उपहास करते लोग टेंशन कम कर रहे है। सरकारी विभाग के कर्मचारी खुश है , बिना काम किये उनके लिए छुट्टियों का अवसर है लेकिन मझोले व्यापारी , निम्न दर्जे के व्यापारियों के साथ बड़ी कंपनियों का अस्तित्व भी खतरे है , कितने दिन तक वो अपने एम्पलॉयस को घर बैठे सैलेरी दे सकता है। एक चिंता का विषय हो जाएगा । हालाँकि सब कुछ ऑनलाइन होने से वर्क फ्रॉम होम का ऑप्शन है लेकिन आखिर कब तक कर पायेंगें सब पूरी दुनियाँ इस समय से गुज़र रहीं है इकोनॉमी का चक्र चलना बंद हो जायगा। निम्न दर्जे के पास पैसे नहीं होंगें और जिनके पास पैसे होंगे लेकिन दुकानों पर सामान नहीं मिलेगा खाने के लिए। ये विचार नकारात्मक नहीं है एक दृष्टि है जो आगे परिस्थितियों को सोच रहीं है।
अभी सबसे पहले हमें इस वाइरस से निजात पाना है और जितना हम सरकारी आदेशों का पालन कर अपने अपने घरों में रहकर लॉक डाउन को सपोर्ट करेंगे। तो जल्द वो दिन आएगा जब फिर से सभी के काम शुरू हो जायंगें। नहीं तो ये सिलसिला आगे बढ़ता रहा तो स्थितियां बदतर होती जायगीं।
वैश्विक महामारी कोरोना आज विश्व के हर घर में एक डर पैदा किये हुए है।
ये मानव द्वारा की गयी क्रियाओं की प्रतिक्रया है जो ये प्रकृति दे रही है - बस अब सहन करने की क्षमता ख़त्म हुई। एक अंधी दौड़ में मानव भाग रहा था किस और कोई नहीं जानता बस सबको सब हासिल करना था। इस वक़्त को हम कह रहे है परिवार के साथ बिताने वाला वक़्त तो सप्ताह के शनिवार और रविवार भी तो सदा रहे हमारे पास लेकिन हम रोज़ से ज्यादा व्यस्त हो जाते उनमें और गाड़ियां उठा कर चल देते कहीं। जबकि इन दो दिनों में पॉल्यूशन पर नियंत्रण कर सकते थे हम। शादियों में अनावश्यक खाने पीने की वस्तुओं का प्रदर्शन जो बाद में वेस्ट बनता है। इस पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है। जो मकान हम बनांते है उसे घर बनाना भूल जाते है। देखा देखि की होड़ में चाहे पॉकेट इज़ाज़त दे या नहीं दे हम कई अनावश्यक यात्राएं कर आते। फिर दौड़ शुरू होती पैसा कमाने की ताकि उस इंस्टालमेंट को उतार सके. फिर रोज मर्रा की आपसी नोक झोक जो बड़े झगडे में बदल जाती और माहौल नकारात्मक हो जाता है ये नकारत्मकता वातावरण में घुल जाती। कटते हुए पेड़ , हर घर में चलते हुए चार चार एयर कंडीशन और बेलगाम गाड़ियों का धुंआ धरती को बोझिल किये जा रहा है। जिसका नतीजा आज सामने आ रहा है।
ऐसा पहली बार हुआ है कि मंदिरों के पट भी बंद है , ये प्रकृति और ईश्वर दोनों ही
अनकही मार दे रहे है इंसान को जो हमें अब भी समय रहते समझनी है। पाप का बोझ जो हरक्षेत्र में बढ़ा हुआ है उसे बेलेन्स करने के लिए ऐसा हो रहा है।
ये वाइरस जिस तरह और जितनी तेजी से दुनियाँ में फैला है और इसके जो नतीजे सामने आ रहे है वो निश्चित तौर पर विज्ञान से परे परा विज्ञान की बात है। सरकार , विज्ञान मेडिकल साइंस सब अपनी अपनी जगह अपना कार्य कर रहे है लेकिन ये अपील हर इंसान से है कि विचारों में क्रियाओं में जीवन में सकारात्मकता अपना कर सरकारी नियमों का पालन कर और प्रार्थना कर हम इस बड़ी विपत्ति को दूर कर सकते है।
इनफार्मेशन और ब्राडकास्टिंग डिपार्टमेंट के कहने से रामायण फिर से प्रसारित होगा दूरदर्शन पर ये बहुत अच्छा कदम है। मनोरंजन के नाम पर जो हम देख रहे है वो हमारी संस्कृति में जहर घोलता हुआ मनोरंजन है।
इस वक़्त ने हमें ये सोचने पर मज़बूर किया है की क्या था हम जिसके पीछे भाग रहे थे इतनी तेजी से , क्या था जिसे हम ट्रेज़र हंट की तरह ढूंढ रहे थे। और इन सबमें हमनें खो दिया वो सुकून वो सुख , अपनों के साथ के पल। ये मौक़ा मिला है सुधार जाने का यकीन मानियें। ये दौर इसीलिए आया है , ज़िन्दगी की खामोश आवाज़ सुनिए
ज़िन्दगी पहले की तरह सादगी से जीना चाहती है।
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