Sunday, October 30, 2011

याद


जब कभी दिल ने तुमसे मिलना चाहा
जब कभी दिल को तुम्हारी याद आई
देख लिया उस आसमान की तरफ
और चाँद तारो की रौशनी में
महसूस कर ली तुम्हारी नज़रे
क्योकि दिल की एक धड़कन कह रही है
कही दूर से ही सही तुमने भी
देखा होगा उस आसमान की तरफ
और हमने नजरो की चमक को
महसूस कर लिया चांदनी में
जो करीब होकर कभी हमने मिलाई थी /

Thursday, October 20, 2011

बदल गया कुछ


कभी तेज हवा के झोके से
दीये की रोशनी को
जब दोनों हाथो की ओट से
बचाया जाता था
उस रोशनी में तेजी देख
आँखों में चमक आ जाती थी
और अब
बिजली की लडियो से अनवरत आती रोशनी
बेफिक्री है तेज हवा के झोके से भी
पर फिर भी
ना आँखों में वो चमक है और
ना दिल में वो सुकून जो
उस दिए की लो को बचाने में था

Wednesday, October 19, 2011

भ्रष्टाचार क्या होता है पापा


हर जगह अन्ना का आन्दोलन देख
एक छ वर्ष का बच्चा बोला
ये भ्रष्टाचार क्या होता है पापा
सोच कर विचार कर बच्चे के सवाल पर
पापा का जवाब आया
बेटा ये वो शेष नाग है
जिस पर टिका हमारा पूरा समाज
जिस दिन गुस्से से पलट जायगा
देश में प्रलय आ जायगा
बच्चा बोला सरल शब्दों में बताये
पापा बोले
किसी काम को करने के बदले
पैसे और चीजो का देना लेना हो
यही सरल शब्दों में भ्रष्टाचार है
तुम ज्यादा दिमाग मत लगाओ
जल्दी अपना होम वर्क निपटाओ
वरना शाम को टॉफी नहीं दिलाऊंगा
ये सुनते ही बच्चा बोला......
पापा क्या यही से भ्रष्टाचार
की शुरुआत है .......

Monday, October 10, 2011

वो मखमली आवाज़ .........


नाजुक उम्र में दिल की धड़कन को आहिस्ता धड़कना सिखाया
वही आवाज़ दिल को छु गयी
जब पहले प्यार का पहला ख़त लिखना आया
हुस्न की तारीफ़ में चौदवी का चाँद भी शरमाया
अपने प्यार को देखने के ख्याल को शब्द देना
इसी आवाज़ ने बतलाया
जब नज़रे मिली तो झुकी हुई नजरो की बेकरारी को
इसी आवाज ने पहचान दी
जब घर बसाया तो उस ख़ुशी को जस्बात देना
इसी आवाज़ ने सिखलाया
कभी जीवन के हालातो में मन घबराया
तो हवाओं के रुख को समझना इसी आवाज़ ने समझया
कभी बचपन के अनमोल पलो को जिया
तो कभी होश में भी बेखुदी को समझाया ...
हर पल हर वक़्त हर जस्बात को आवाज़ दी
चले गए दूर जहा ना चिट्ठी है ना सन्देश
फिर भी अहसास करंगे उन जस्बातो को
जिनको इस आवाज़ ने जी भर के जीना सीखाया है

Wednesday, October 5, 2011

काश में चाँद बन जाऊ


काश में चाँद बन जाऊ
आसमान में रहू
जमीन पे सिर्फ नज़र आऊ

दूर फलक से बिखेरू अपनी चांदनी
जमीन का कोना कोना रोशन कर जाऊ

उन्मुक्त गगन के आचल में खेलु
तारो को अपना दोस्त बनाऊ

कभी आधा कभी पूरा
कभी बादलो की ओट में छुप जाऊ

चांदनी से शीतलता मिले सबको
और सिर्फ प्रेम की बातो में नजर आऊ

नफरत , अहंकार , और कटुता से दूर
फलक पर मुस्कुराता नज़र आऊ