Thursday, October 21, 2010

निंदा ओर आलोचना


जानता है ये मन की निंदा ओर आलोचना करना गलत है
पर फिर भी कभी किसी का अन अपेक्षित स्वभाव
मजबूर कर देता है निंदा करने को ,
बात जबान से निकलती है लेकिन मन कहता है
ये निंदा नहीं आलोचना है
ओर शायद फर्क है निंदा ओर आलोचना में
शब्दों में निंदा का भाव बना देता है कुरुक्षेत्र का मैदान
टकरा जाता है अहम् ओर चूर हो जाते है रिश्ते नाते
लेकिन आलोचना का अर्थ होता है
उस सत्य की खोज जो कभी कभी
छुपी रह जाती है

Saturday, October 16, 2010


एक पहलू जीवन का

जीवन सागर के उस किनारे जैसा
जिसमे समय के साथ कभी
शंख ,सीप मोती मिलते है
तो कभी टूटी फूटी बुरी वस्तुए भी
ओर इन सबका आना होता है
लहरों के साथ ओर
ये तेज ओर धीमी लहरे
जीवन में आने वाले हर शख्स
का बोध करवाती
जैसे किसी के आने से
सुख की अनुभूति होती है ओर
किसी के जाने से ....

Friday, October 8, 2010


लड़की

लड़की उस नन्हे पोधे की तरह ,
जिसे एक बाग़ से उठा बागबान
दुसरे उपवन में लगाता है ...
लेकिन फर्क आ जाता है ,
हवा परिस्थिति ओर माली का
फिर भी जम जाती है जड़े
नए वातावरण में .....
खिलते है फूल ओर खुशबू भी महकती है
क्योकि सुद्रढ़ होते है संस्कार
उसकी नन्ही जड़ो में ................