Thursday, April 16, 2020


                                                           Manish Mundra                              words - Anshu Harsh



एक सुलतान जो मन का कबीर है 

  ज्यादा से ज्यादा किसी के काम आना सही मायने में सफलता है




मनीष  मूंदड़ा एक नाम जिसका फ़िल्मी दुनिया का सफर लगभग 2015 में " आँखों देखी  " से शुरू हुआ आज एक मुकाम हासिल कर चुका है।उनके बैनर तले  बनी फ़िल्में  मसान  धनक  कड़वी हवा और न्यूटन। नेशनल अवार्ड के लिए चुनी जा चुकी है।  ये सभी फिल्में फिल्म इंडस्ट्री में एक बदलाव की बयार ले कर आयी है।  बदलाव जो ज़मीन से जुड़ा है , वो ज़मीन जहाँ  से हम सभी जुड़े है और कही न कही फिल्मों के माध्यम से  अपनी बात की अभिव्यक्ति करने की कोशिश करते है।  शायद इसीलिए दर्शक वर्ग इन फिल्मों से एक जुड़ाव महसूस करता है।  हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म कामयाब और आने वाली फ़िल्में है  रामप्रसाद की तेहरवीं और आधार।  जल्द ही मनीष  डायरेक्शन की दुनियाँ में भी कदम रखने वाले है जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है इस वर्ष के आखिरी तक संभवतया शूटिंग पूरी हो जायगी।  आज जिस मुकाम पर मनीष   है वहाँ से लोगो के छोटे बड़े सपनो को पूरा करने में कोई कमी नहीं रखते  , चाहे वो पढ़ाई के लिए किसी की फीस देनी हो या या किसी का इलाज करवाना हो। फिल्म इंडस्ट्री में भी नए फिल्म मेकर्स  सहायता करने में कोई कमी नहीं रखते।  उनका सपना है ऑस्कर उन्हें मिले लेकिन पिछले साल  एक फिल्म जो उस दौड़ में थी उसे फाइनेंशल सपोर्ट कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जो क़ाबिले तारीफ़ है।  

 जिस कालेज से वो स्वयं कर्ज़ा ले कर पढ़े वह अब उन्होंने पचास लाख रुपए में डिजिटल बोर्ड्स लगवा कर अभूतपूर्व कार्य किया है।  लीला फाउंडेशन के अंतर्गत मनीष  एक स्कूल एस फ़ोर्ड एकेडमी भी चलाते है जोधपुर के पास पेशावास  गाँव में  जहाँ लगभग 150 बच्चे  आठवीं तक की शिक्षा बिलकुल मुफ्त प्राप्त करते है। तथा उसके बाद की शिक्षा के लिए उन्हें मार्गदर्शन दिया जाता है।  उनकी यूनिफार्म और स्टेशनरी तक का खर्च मनीष स्वयं देखते है। वहां न केवल शिक्षा दी जाती है बल्कि सिलाई , कंप्यूटर और संगीत सीखाने की व्यवस्था भी है जिससे बच्चों का चहुँमुखी विकास हो।  साथ ही एक एस फोर्ड  गौशाला को भी मनीष सहयोग देते है जहाँ लगभग 211 गाय है । वहाँ  उन गायोँ की सेवा की जाती है जो दुधारू नहीं रही है , बूढी गायों की सेवा की जाती है  . कई गाय ऐसी भी है जो बच्चे भी देती है।  उनकी  देखरेख के लिए चार लोग रखे हुए है।  हाल ही में मनीष व् उनके पिताजी बद्रीदास मूंदड़ा  ने चार करोड़ चालीस लाख रु मथुरा दास माथुर अस्पताल जोधपुर को दान दिए है। जिससे अस्पताल में चालीस कॉटेज वार्ड बनवाएं  जायँगे। उनका मानना है जो है वो आज है , जो नेक कार्य करना चाहते हो वो अभी कर दो अपने माता पिता की मौजूदगी में उनके सानिध्यं में आशीष दुगनी मिलती है। 

कभी कभी ज़िन्दगी हुत जल्द इम्तिहान ले कर हमें तराश देना चाहती है और मन में ज अपने साथ अपनों के लिए कुछ करने का जूनून होता है तो ज़िन्दगी खुद  खुद नयी राहें नाती चली जाती है।


Few words In his own way - 

मूल रूप से तो मैं राजस्थान  जोधपुर का रहने वाला हूँ लेकिन मेरा  जन्म झारखण्ड के देवधर  में हुआ शाम का समय था और बहुत बारिश  हो रही थी और शहर  की बिजली बंद  थी। एक लालटेन की रौशनी से बहुत मुश्किल से कुछ नज़र आ रहा था। ज़िन्दगी का शुरूआती दौर बहुत कठिनाईओं भरा रहा सड़क पर जूस बेचने से ले कर एक पेट्रोकेमिकल कंपनी के एम् डी बनने का और उसके बाद फिल्म प्रोडक्शन बनने का सफर बहुत दिलचस्प रहा लेकिन ज़िन्दगी बहुत कुछ सीखा गयी , मेरी सीख मेरे भाव अब मेरी कविताओं और पेंटिंग्स के रूप में सामने आते है बहुत कुछ है जो  अनकहा है आज भी.  ज़िन्दगी ने बहुत सिखाया है मुझे। अपने इस सफर में अपनी ज़िन्दगी के लिए कुछ सिद्धांत बनाए है मैनें जिन्हे अपने  व्यवहार में अपनी ज़िन्दगी में उतारा है  . अपनी इज़्ज़त करो और खुद से प्यार करो तभी हम दूसरों को सम्मान दे पायेंगे ज़िन्दगी में हमसे मिलने वाला इंसान अपनी एक कहानी लिए हुए होता है हो सकता है उसकी दास्तां  भी उतनी ही दर्द भरी हो जितनी आपकी अपनी आपको  लगती है इसलिए हर शख्स का सम्मान  करो चाहे वो  कुछ देर के लिए  ही सही आपकी ज़िन्दगी में आया है।  


अपनी कथनी और करनी में अंतर मत रखो कोई भी रिश्ता  चाहे वो पर्सनल हो या प्रोफेशनल उसे निभाने के लिए आपके विचार और बातें दोनों ही साफ़ और  सच्चे होने चाहिए।
ज़िन्दगी की दौड़ में अगर दूसरों से आगे निकलना चाहते  है तो अपने हौंसले को कायम रखना बहुत जरूरी है कई बार  ऐसा होता  है जब मंजिल सामने होती है और उस तक पहुँचने के लिए भी हिम्मत जवाब दे देती है बस वही कदम जब लगता  है कि नाक़ामियाँ चरम  पर है तो हौंसले को टूटने मत देना बस वही से कामयाबी  करीब होती है। 


ज़िन्दगी के पुराने छोटे छोटे पल मुझे आज भी याद है बचपन में यूँ तो बहुत निडर था मैं कभी कभी ज़िन्दगी जब बहुत डराती थी वो छत के दरवाज़े के पीछे बैठ कर रोना मुझे आज भी कई बार याद आ जाता है।  अधपके आम तोड़ना और छत पे सोते हुए  गिनना मुझे ज़िन्दगी का खूबसूरत  पल याद दिला जाते है। पहला अनुभव ज़िन्दगी  का सदा साथ रहता है , पहला प्यार , पहली नौकरी पहला हवाई सफर , पहली विदेश यात्रा , अपने बच्चों को पहली बार गले लगाना , पहला सब बहुत अहम् होता है  जीवन में।  


जोधपुर से अपनी मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने करियर की शुरुआत भी  राजस्थान  से की।  अपनी मेहनत के दम पर सफलता हासिल करते हुए हिन्दुस्तान के बाहर कदम रखा और पिछले 12 सालो से अफ्रिका के नाइज़ीरिया में इंडोरामा फर्टिलाइज़र्स के सी इ ओ के रूप में काम कर रहा हूँ।   फिल्मे देखने का शौक बचपन से था , घरवालों से छुप  कर सिनेमा देखने की पुरानी यादे आज जहन में ताज़ी है लेकिन इस इंडस्ट्री में इतना कुछ करने के बारे में कभी बहुत गम्भीरता से नहीं सोचा था लेकिन कुछ ख्वाब होते है जो अंतर्मन में पलते  है उनमे से यह भी एक ख्वाब था और यह ख्वाब परिपक्व हो कर एक साकार रूप लेगा यह मैंने सोचा नहीं था।

उपरवाले का साथ और आर्शीवाद रहा की बहुत काम समय में  इतनी बड़ी इंडस्ट्री में अपने आपको बतुर प्रोड्यूसर  स्थापित किया ही है साथ ही नए लेखक , नए डाइरेक्टर्स को  भी मौका दिया है। फ़िल्मी दुनिया में दृश्यम फिल्म्स की स्थापना से युवा वर्ग में एक उत्साह का संचार है जहाँ नए और संघर्ष कर रहे वर्ग को आशा की किरण  नज़र आती है। दृश्यम फिल्म्स  की तरफ से पुरे भारत वर्ष से नई कहानिया आमंत्रित की जाती है । मेरा  मानना है की  लेखन में यानी किसी भी फिल्म  के कंटेंट में दम  होना चाहिए इसीलिए हम उन नयी कहानियों की खोज में है जो जमीन से जुडी है लेकिन भाषाओं और परम्पराओं की सीमाओं को पार कर पूरी दुनिया के दिलो पर राज करने का दम रखती है।

दृश्यम फिल्म्स की हर फिल्म इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में जीत हासिल कर  दर्शक वर्ग का दिल जीत रही है और नेशनल अवार्ड या कोई भी बड़ा अवार्ड  मिलने पर मेरा ये मानना है की यह गर्व  की बात  है जब आपको यह सम्मान सरकार द्वारा  मिलता है तो ख़ुशी दुगनी हो जाती है की जिस क्वालिटी का कंटेंट हम दर्शकों को दे रहे है सरकार उसकी सराहना कर  रही है। नेशनल अवार्ड लेना मंजिल  नहीं है मेरे  लिए यह महज़ पड़ाव है आगे का रास्ता देखने के लिए। 
ऊपर  वाले का आशीर्वाद रहा और मैंने मेहनत  से वो सब पाया जिसके मैं ख़्वाब देखता था।  अब फिल्में बनाता हूँ , पेंटिंग , ट्रेवलिंग और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का शौक है और लेखक भी कह सकते है पिछले साल अप्रेल में  " कुछ अधूरी बाते मन की "  मेरा कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है।  


(  मनीष  मूंदड़ा से बातचीत पर आधारित है -  अंशु हर्ष  )  Article was published In www.voiceofjaipur.com  #voiceofjaipur

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