Monday, November 14, 2011

क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ


सुबह की धुप में आलस की अंगडाई
सिर्फ में ले सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

नज़रे चुराकर दूध का ग्लास नाली में
में बहा सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

सड़क पर भरे बारिश के पानी में छपाक छयी
में कर सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

दीवारों पर अपनी कल्पना की चित्रकारी में रंग
में भर सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

कही भी रोना , कभी भी हँसना
उसी क्षण अपनी भावनाओ को प्रदर्शित
में कर सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

ये जीवन जो तुम जी रहे हो
में बाद में भी जी सकता हूँ
पर मेरा जीवन सिर्फ में जी सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

Thursday, November 10, 2011

शक्ति स्वरूपा का साकार रूप


एक छोटी सी बच्ची को देखा .....
उम्र यही कोई तीन साल की
चोबीस घंटे के साथ में
उसने ना जाने अपने
कितने रूप दिखाए
कभी रसोई में खाना बनाया ..
कभी माँ बन अपनी गुडिया को सुलाया
और कभी थेला टांग साइकल पर बैठ
बाजार जाने का मन बनाया
कभी बन टीचर बच्चो को पढाया
और कभी अपने असली रूप में आ
खुद अपनी माँ की गोद में सर टिकाया
यह सब देखने के बाद मन में आया
इश्वर ने इस लड़की नामक कृति को
क्या खूब बनाया है
इतनी से उम्र में सब समझ में आया
की सिर्फ बेटी बन कर नहीं जीवन चलाना
बहन, दोस्त पत्नी और बहु......
टीचर से ले कर और भी काम है बहुत
हर क्षेत्र में नाम है कमाना
वास्तव में तब समझ में आया
सब देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियों से
देवी को बनाया
और शक्ति स्वरूपा का साकार रूप लिए
इस धरती पर लड़की का अवतरण करवाया /

सीख


एक बड़ा सुखा पेड़ और
उसके नीचे फ़ैली पत्तिया
यही सीख देती है जीवन में .............
कैसे भी परिस्तिथि आये
अटल रहो , मत छोडो अपनी जड़े
चाहे बिखरना पड़े
क्योकि परिस्तिथिया फिर बदलेंगी
नव पल्लव नजर आयंगे
और वृक्ष फिर से हरा भरा हो जायगा
और अगर छोड़ दी अपनी जगह ही
तो वजूद ही मिट जायगा