आजकल फ़िल्मी प्रेम कहानी में लड़का लड़की के साथ "कड़वी हवा " भी है - संजय मिश्रा
शब्द - अंशु हर्ष
Anshu Harsh
संजय मिश्रा एक ऐसे कलाकार जिन्होंने सिनेमा के परदे पर अलग अलग किरदारों को अपनी अदाकारी से यादगार बनाया है . गोलमाल , धमाल ,वेलकम और ऐसी बहुत सी फिल्मों में परदे पर दर्शकों को गुदगुदाया है और देखने वालों के मन में उस सिनेमा के उसी किरदार के रूप में पहचान बनायीं है जिस किरदार को उन्होंने निभाया है । इस बात पर संजय कहते है कि ' किस्मत का एक दायरा होता है उस तक पहुंचने के लिए चलना पड़ता है और मेरी किस्मत के दायरा का सिरा मुझे आँखों देखी तक जा कर मिला जहाँ से लोग संजय मिश्रा को एक किरदार के नाम से अलग खुद के नाम से जानने लगे वही असली सम्मान होता है जो दर्शक आपको स्वयं देता है और मैं खुशनसीब हूँ की ये सम्मान मैंने मेहनत से पाया है। आते ही छा गए इंडस्ट्री में ऐसा नहीं हुआ। "
संजय से पुछा अभी तक निभाए गए किरदारों में से कौन सा ऐसा किरदार है जिसे संजय ने डूब कर निभाया है तब संजय ने कहा कि में हर किरदार को डूब कर निभाता हूँ मेरे अंदर का कलाकार खुद उस किरदार में डूब जाता है कला के नवरस को हमें परदे पर चित्रित करना होता है और और यही एक कलाकार की परीक्षा होती है या उसकी कला के प्रति उसका समर्पण होता है की वो हर रस को अपनी कला के माध्यम से सफलतम चित्रित करे और देखने वालो की निगाहों में समा जाये। "
नवरसों से कोई भी रस हो संजय ने हर फिल्म में एक अलग रस को निभा कर अभिनय के क्षेत्र में जो पहचान बनायीं है वो काबिले तारीफ है। कड़वी हवा के क़िरदार में संजय का अभिनय बहुत दमदार नज़र आने वाला है संजय कहते है कि "उपरवाले का शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरी झोली में कड़वी हवा जैसी फिल्म आयी , इसमें अभिनय कर के मुझे ये अहसास हो रहा कि मैंने समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाया है , इस तरह का सिनेमा बनना चाहिए और लोगो को इसे देखना भी चाहिए। प्रकर्ति प्रभाव को हम सोच भी नहीं सकते वो दिल्ली में दिखने लगा है। प्रशासन इसके प्रति सचेत हुआ है लेकिन दायित्व है की प्रकर्ति के प्रति अपने व्यवहार को समय रहते सुधार ले वरना वो समय दूर नहीं है जब इस अर्थ का अनर्थ हो जायगा। इसी बात को हमने कड़वी हवा के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है। "
इस तरह का सिनेमा जिसमे हम सामाजिक सरोकारों की बात करते है व्यावसायिक तौर पर काम चल पाती है लेकिन देखने वालों के दिलों पर एक सवाल जरूर छोड़ती है आँखों देखि के बाद इस तरह की फिल्मे फिर से बनने लगी है इस पर संजय का कहना है कि इस तरह की फिल्मों के सूत्रधार थे सत्यजीत रे , श्याम बेनेगल सई परांजपे और बहुत मुश्किल होता था ऐसा सिनेमा बनाना लेकिन अब कमर्शियल सिनेमा के पास भी दिखाने के लिए कुछ नहीं रह गया है इसीलिए फिल्मों की प्रेम कहानी में एक लड़का एक लड़की के साथ अब कड़वी हवा है। सिनेमा से साहित्य गायब सा हो गया है और जिस फिल्म में इसकी झलक नज़र आती है वो निश्चित तौर पर सफल फिल्म है दर्शक ऐसी फिल्मे पसंद कर रहे है न्यूटन हो , आँखों देखी मसान ये सभी सफल फिल्मों की श्रेणी में आती है और इनके प्रोडूसर मनीष मूंदड़ा को सलाम करता हूँ कि इस तरह का सिनेमा इंडस्ट्री में फिर से लाने में वो सफल हुए है।
कड़वी हवा में जो किरदार संजय ने निभाया है उसे निभा कर उन्होंने प्रकर्ति के प्रति अपनी एक जिम्मेदारी को निभाया है लोगो में जागरूकता लाने के लिए क्योकि हिन्दुस्थान में सिनेमा और क्रिकेट दो ऐसी चीजे है जिनसे दर्शक और जनता जुड़ जाते है सरकार को भी इसके प्रति कुछ कदम बढ़ाने चाहिए की सामाजिक सरोकारों का सिनेमा आम जान तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचे व्यावसायिक तौर पर भी और जिम्मेदारिक तौर पर भी। अगर सरकार सहयोग देती है तो निश्चित तौर पर यह फिल्म एक क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग जैसे इश्यू पर प्रकाश डालती हुई जागरूकता सन्देश बन सकती है। शूटिंग के अनुभव की बात करू तो संजय कटे है कि हम खुशनसीब है कि हमें हवा पानी पर्याप्त मात्रा में अभी भी मिल रहा है बुंदेलखड और धौलपुर के ऐसे जगहों पर हमने शूटिंग की है जहाँ के हालात देख कर दिल दहल जाता है पानी लाने के लिए महिलाये , लड़किया कितनी दूर चल कर जाती है। इस फिल्म के माध्यम से मैं थोड़ी भी जागरूकता ला सका तो मुझे वास्तविक ख़ुशी का अनुभव होगा संजय अपना काम कर चुका अब आपकी बारी है सोचने की , समझने की और इस कड़वी हवा को बेहतरीन बनाने की।
Date Of Interview - 16 November 2016 #Interview By #AnshuHarsh #SimplyJaipur
#SanjaiMishra #KadviHawa #Envorment #Earth #Drishyamfilms #Water #Savewater
No comments:
Post a Comment