Monday, November 19, 2012

बस की बात

हवा की तेज़ सरसराहट से
शाख से अलग हुआ पत्ता
इठलाता , झूमता
घूमता हुआ इधर उधर
बह चला नदी के पानी में
तैरता हुआ ....बोला
ओह ...मुझे तैरना भी आता है ...
यु ही टंगा था इतने दिनों से .??
शाम ढले शाख ने आवाज़ दी ...
लौट आओ ..
पर ..पत्ता हुआ उदास
बोला नहीं रही अब ये
मेरे बस की बात
 
 

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