Thursday, December 8, 2011

आज भी

बचपन में जब ऊँगली थाम कर आपने चलना सिखलाया था थोडा खुश और थोडा डरा सा में दो कदम चल पाया था ..... आज चल भी पाता हूँ और मंजिल के करीब भी हूँ सक्षम भी हूँ और निडर भी हूँ ........फिर भी जरूरत महसूस होती है उस हाथ की जो अद्रश्य मेरे साथ है पर महसूस करना चाहता हूँ उन उंगलियों की पकड़ आज भी ...........

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