बचपन में जब ऊँगली थाम कर आपने चलना सिखलाया था
थोडा खुश और थोडा डरा सा में दो कदम चल पाया था .....
आज चल भी पाता हूँ और मंजिल के करीब भी हूँ
सक्षम भी हूँ और निडर भी हूँ ........फिर भी
जरूरत महसूस होती है उस हाथ की
जो अद्रश्य मेरे साथ है पर
महसूस करना चाहता हूँ
उन उंगलियों की पकड़ आज भी ...........
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