Monday, November 14, 2011

क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ


सुबह की धुप में आलस की अंगडाई
सिर्फ में ले सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

नज़रे चुराकर दूध का ग्लास नाली में
में बहा सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

सड़क पर भरे बारिश के पानी में छपाक छयी
में कर सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

दीवारों पर अपनी कल्पना की चित्रकारी में रंग
में भर सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

कही भी रोना , कभी भी हँसना
उसी क्षण अपनी भावनाओ को प्रदर्शित
में कर सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

ये जीवन जो तुम जी रहे हो
में बाद में भी जी सकता हूँ
पर मेरा जीवन सिर्फ में जी सकता हूँ तुम नहीं
क्योकि तुम बड़े और में बच्चा हूँ

1 comment:

  1. इस बहाने तीन दशक पुरानी यादें ताज़ा हो गई........!!

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