Tuesday, April 27, 2010

beej


में सिक्का नहीं हूँ ,
जो जेब से गिर कर ,एक बार खनक कर रह जाऊंगा .....
में वो नन्हा सा बीज हूँ जो जमीन पर गिरा ,
तो एक दिन बड़ा पेड़ बन कर ,
तुम्हारी जिंदगी को चिलचिलाती हुई धुप से बचा कर,
अपनी छाव में बेठऊंगा
में दोस्ती का वो बीज हूँ .....
जो एक बार फल गया तो.
.हर रिश्ते में जी कर दीखाऊंगा

Sunday, April 25, 2010

में नहीं दूंगा तुम्हे तुम्हारी हर समस्या का हल ,
फिर भी सुनुगा तुम्हारे जज़्बात और
साथ बैठ निकालेंगे हल :

में नहीं बदल सकता तुम्हारे अतीत के पल और भविष्य के कहानिया
पर अभी हु तुम्हारे साथ इस पल :

में नहीं रोक सकता तुम्हारे कदमो को डगमगाने से ,
सिर्फ दे सकता हूँ अपना हाथ संभलने के लिए :

तुम्हारी जिदगी के फैसले तुम्हारे अपने होंगे ,
में दूंगा उन्हें सहारा , उत्सा ह और मदद
जब तुम चाहोगे :

में नहीं रोक सकता तुम्हारे दिल को टूटने से ,
पर तुम्हारे पास हूँ तुम्हे सहारा देने और उन टुकडो को जोड़ने के लिए :

मेरी दोस्ती के तुम्हारे जीवन में कोई बंदिशे नहीं होगे ,
में नहीं चाहता तुम उन बेडियों में उलज जाओ ,
सिर्फ जियो मेरे साथ उत्साह उमंग और बिना शर्तो के साथ :

में नहीं बता सकता कोंन हो तुम
पर में हूँ तुम्हारा दोस्त ............एक सुल्ज़ी हुई दोस्ती के साथ
माँ

शब्दहीन है .... माँ की गोद का सुकून ....
जो हर ले ता है सारी पीडा और उलझन ....
मिलता है ममता से वो आनंद
जिससे मन हो जाता है प्रस्सन ......

माँ .......

दूर रहकर भी समझ जाती हो मेरे जस्बात ........
छोड़ जाती हो अपने पास होने का अहसास ......
विदाई के समय की हर सीख है याद पर...........
माँ को भूल जाना कह होता है आसान..

मीलो दूर है .............

वे उंगलिया जो तेल लगाती थी बालो मैं ...
और वो हाथो की मीठी थपकी जो लगती थी गालो पर ........
उन हाथो का खाना जो इतने सालो नखरे से खाया और
वो दूध कभी पीयाकभी नज़र चुराकर गिराया ......
तरस जाती हूँ
कभी उस खाने को
कभी प्यार से कभी डांट कर खिलाती थी तुम जैसे
माँ , कैसी होती है ,
कोई कहता है सागर जैसी कोइ कहता आकाश जैसी ,
कोई कहता धुप में छाया जैसी ,
या रेगिस्तान में पानी की बूँद जैसी
लेकिन में इन सबको नहीं जान पाता हूँ ...
में माँ का छोटा बच्चा हूँ ,सिर्फ माँ को पहचान पाता हूँ
मेने माँ को देखा है माँ ऐसी होती है .........
जो मुझे खिलाती है , पिलाती है लोरी गाकर सुलाती है ,
सारे घर का काम छोड़कर मेरा दुलार करती है ,
रात को जब में रोता हूँ तो सीने से लगाकर सुलाती है
दिन भर जब खेल करता हूँ तो सारी थकान भूल जाती है
अपने जीवन का सबसे कीमती "वक़्त " मुझे देती है
माँ सबसे सरल है इस दुनिया में तभी तो
सबसे पहले माँ बोल पाता हूँ
माँ सिर्फ माँ है कोई उपमा की नहीं दे पाता हूँ
में छोटा सा बच्चा हूँ , सिर्फ माँ को ही जान पाता हूँ

अमर उजाला