Tuesday, April 27, 2010

beej


में सिक्का नहीं हूँ ,
जो जेब से गिर कर ,एक बार खनक कर रह जाऊंगा .....
में वो नन्हा सा बीज हूँ जो जमीन पर गिरा ,
तो एक दिन बड़ा पेड़ बन कर ,
तुम्हारी जिंदगी को चिलचिलाती हुई धुप से बचा कर,
अपनी छाव में बेठऊंगा
में दोस्ती का वो बीज हूँ .....
जो एक बार फल गया तो.
.हर रिश्ते में जी कर दीखाऊंगा

2 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना है. यही जज्बात सभी के हों.

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  2. All Articles are very very Appreciatable..Keep It Up..You are a Great Writer..

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