बंद है किसी अलमारी में तोहफे में मिली किताबे
अब तो दोस्त तोहफा भी पेन ड्राइव का देते है
गुजरता था वक़्त जो पन्ने पलटने में
अब तो अंगुलिया की बोर्ड पे रख देते है /
कभी नज़रे जमाये बैठते थे किताबो पर
अब कम्प्यूटर की स्क्रीन से हटती नहीं है
कभी सीने से लगाये सो जाते थे उन्हें
अब तो उसकी जगह भी टेबलेट ने ले ली है /
लेकिन नहीं है इस कम्पूटर और टेबलेट में
खुशबू उन सूखे हुए फूलो की
जो मिल जाते थे उन पुरानी किताबो में
जो महका कर उस पल को दिला जाते थे याद
किसी की पहली मुलाक़ात और हसीन लम्हों की
सही बात कह दी आपने। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में भावनाएं भी हाईटेक हो गई हैं। किताबों की जगह कम्प्यूटर तो पत्रों की जगह मोबाइल न ले ली है, लेकिन जिस आनंद की अनुभूति किताबों एवं पत्रों में होती थी वह कम्प्यूटर एवं मोबाइल में कहां?
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