बचपन की वो अमीरी ना जाने कहा खो गयी
जब बारिश के पानी में हमारे भी जहाज तैरा करते थे ..
वो हिम्मत वो हौसला कही छुप गया
जब कोहरे की सुबह साइकल पर निकल पड़ते थे
वो मासूमियत अब कहा
जब छत पर बैठ तारे गिना करते थे
अब कहा वो बेफिक्री जब
किसी के उदास होने की फिक्र भी ना किया करते थे
अब कहा ऐसी हुकूमत
जब रेत के घर बना उन पर नाम लिख दिया करते थे
अब कहा वो जिंदादिली जब
मिटटी में पानी मिला खूब कीचड़ से खेला करते थे
अब कहा वो अलबेलापन जब
गुब्बारों के रंग पर अटक जाया करते थे
अब समझदारी, दुनियादारी, वफादारी सब निभाने में लगे है
बचपन की वो नादानी कहा गयी जब इन सबको समझा भी ना करते थे /
No comments:
Post a Comment