Tuesday, January 3, 2012

गुज़ारिश ......

छोड़ दो मत भरो उन्मुक्त उड़ान इनदिनों ....


क्योकि ...कागजी परिंदों का दौर है आकाश में इनदिनों ...



वो तुमसे अनजान और तुम उनसे पर

एक डोरी से जो उसका नाता

कर देगा वो तुम्हे घायल इनदिनों



वो डूबेगी तो ले डूबेगी तुम्हारी ज़िन्दगी

क्योकी इस डोर का एक छोर है इंसान के हाथ इनदिनों ....



तुम्हारी मूक वेदना को वो नहीं समझता

पतंगबाजी में मस्त है वो इनदिनों ....



तुम्हारे भी दिल है तुम्हे भी दर्द होता है

इसलिए तुम्हारी और से गुजारिश है

चाहे मत छोडो अपने उत्सव के उल्लास को .....पर

सादी डोर काम में लो इनदिनों...........

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