जब पिंजरे में केद देखा
रंग्बीरंगी चीड़ीया को
मन हो गया उदास क्योकि ...
पंख दे कर उड़ान में विघ्न डालना
मुझे है नापसंद ,
पर शांति दूत ये पक्षी ,
सहन करते है इस बंधन को
क्योकी
जानते है वो ....
प्रकर्ति पर कलियुग का है प्रकोप
ऑंधी चली, बिजली कड़की, ओले गिरे,
बेमौसम बरसात का भी है जोर
कोंन करेगा रखवाली हमारी
यहाँ चारदीवारी में केद है
पर ........
सब अपने है , सब साथ है ,सुरक्षित है .
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