Wednesday, November 10, 2010

क्यों नहीं स्वीकारते हम


क्या जीवन उचित है पानी जैसा
कहने को शीतल जल
पर तेज बहाव ले जाता है
मानवता ओर शीतलता /
यु तो बेरंग पानी
पर हर रंग में घुल जाये
शायद सीखाता है ,
हर परिस्थिति में सामंजस्य बैठाना/
जब मंजिल नजर आती है तो
राह में चाहे चट्टान आये या मैदान
बना लेता है अपनी राह सबको चीरते हुए /
कुछ गुण ओर कुछ अवगुण
पर स्वीकार्य है सभी को
ओर यही कहा जाता है
जल है तो जीवन है /
फिर क्यों नहीं स्वीकारते हम
अपनों को अवगुणों के साथ ???????

1 comment:

  1. जल है तो जीवन है /
    फिर क्यों नहीं स्वीकारते हम
    अपनों को अवगुणों के साथ
    प्रश्न उत्तर विहीन है लेकिन फिर भी खोज जारी है

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