बाई................
एक द्रश्य शक्ति थी तुम , लेकिन अब अद्रश्य हो गयी
यु लगता है जीवन में कुछ कमी सी हो गयी
कहा जायंगे अब हम उलझे मन को लेकर
कोंन सुलझाएगा अनसुलझे सवाल
और
कोंन विश्वास दिलाएगा "राम जी" के होने का ....
जानता है मन तुम साथ हो
एक अद्रश्य शक्ति हो
लेकिन फिर भी पाना चाहता है ये मन
वो मीठे पताशे , वो दूध का प्याला , वो कडकडाते नोट
और उन उंगलियों की पकड़ आज भी .................
प्रिय अंशु हर्ष जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
कहा जायंगे अब हम उलझे मन को लेकर ?
कौन सुलझाएगा अनसुलझे सवाल ?
और
कौन विश्वास दिलाएगा "राम जी" के होने का … !
बहुत भावपूर्ण रचना है
जानता है मन तुम साथ हो !
सच है हमसे बिछुड़ने वाले हमारे कभी हमसे दूर नहीं होते …
होली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित
चंद रोज़ पहले आ'कर गए
विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
♥मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Har lamh tere hone ka ahsas hai..
ReplyDeletejaane kyo kuch galat hone se pahle
teri nasihate saath hai...
tu ab bhi mere aas paas hai..
tu ab bhi mere aaspaas hai...