क्या जीवन उचित है पानी जैसा
कहने को शीतल जल
पर तेज बहाव ले जाता है
मानवता ओर शीतलता /
यु तो बेरंग पानी
पर हर रंग में घुल जाये
शायद सीखाता है ,
हर परिस्थिति में सामंजस्य बैठाना/
जब मंजिल नजर आती है तो
राह में चाहे चट्टान आये या मैदान
बना लेता है अपनी राह सबको चीरते हुए /
कुछ गुण ओर कुछ अवगुण
पर स्वीकार्य है सभी को
ओर यही कहा जाता है
जल है तो जीवन है /
फिर क्यों नहीं स्वीकारते हम
अपनों को अवगुणों के साथ ???????